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स म॑न्दस्वा॒ ह्यन्ध॑सो॒ राध॑से त॒न्वा॑ म॒हे। न स्तो॒तारं॑ नि॒दे क॑रः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

sa mandasvā hy andhaso rādhase tanvā mahe | na stotāraṁ nide karaḥ ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सः। म॒न्द॒स्व॒। हि। अन्ध॑सः। राध॑से। त॒न्वा॑। म॒हे। न। स्तो॒तार॑म्। नि॒दे। क॒रः॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:41» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:4» मन्त्र:1 | मण्डल:3» अनुवाक:4» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् पुरुष ! (हि) जिससे आप (स्तोतारम्) विद्वान् पुरुष की (निदे) निन्दा करने के लिये (न) नहीं (करः) करें इससे (सः) वह आप (तन्वा) शरीर से (अन्धसः) अन्न आदि की (महे) बड़ी (राधसे) सिद्धि करनेवाले धन के लिये (मन्दस्व) आनन्द करो ॥६॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य स्तुति करने योग्य पुरुषों की निन्दा नहीं करते, वे बड़े ऐश्वर्य को प्राप्त होकर शरीर और आत्मा से सदा ही सुखी होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन् ! हि यतस्त्वं स्तोतारं निदे न करस्तस्मात्स त्वं तन्वाऽन्धसो महे राधसे मन्दस्व ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (सः) (मन्दस्व) आनन्द। अत्र संहितायामिति दीर्घः। (हि) यतः (अन्धसः) अन्नादेः (राधसे) संसिद्धिकराय धनाय (तन्वा) शरीरेण (महे) महते (न) निषेधे (स्तोतारम्) विद्वांसम् (निदे) निन्दनाय (करः) कुर्यात् ॥६॥
भावार्थभाषाः - ये मनुष्या स्तुत्यर्हान् निन्दितान् न कुर्वन्ति ते महदैश्वर्य्यं प्राप्य शरीरेणात्मना च सदैव सुखयन्ति ॥६॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे स्तुती करण्यायोग्य पुरुषाची निंदा करीत नाहीत ती ऐश्वर्य प्राप्त करून शरीर व आत्मा यांनी सदैव सुखी होतात. ॥ ६ ॥